भाग्य

निराशाओं के बादल ने घेरा है मुझको,
पनघट ने प्यासा भेजा है मुझको,
सामर्थ्य भी अपना व्यर्थ लगता है,
जब भाग्य झुका देता हैं मुझको।

सबके संघर्ष की व्याख्या अलग है,
सबके कष्टों का भार अलग है,
जब दुनिया में चमत्कार होते हैं,
तो भाग्य कर्मो पर निर्भर क्यों है?

यदि कर्म करना ही छोड़ दिया,
तो भाग्य क्या चमत्कार दिखाएगा,
कर्मो ने ही हमें अद्वितीय बनाया,
अन्यथा ईश्वर ने तो एक सा बनाया।

Comments

Popular posts from this blog

ठंडी रात

समय

अकेला मन