अनमोल रत्न

अनमोल रत्न में भूल गया,
किसी अंजान की कुटिया में,
शायद उनका महत्व ही भूल गया,
समय के इस बहाव में।

संजोकर रखना था उन रत्नों को,
मंजिल तक पहुंचने में,
परन्तु कष्ट समझकर भार उनका,
बिखेरता ही चला गया मैं।

यात्रा के इस पड़ाव में,
व्यर्थ लगता है सफर,
उन रत्नों को पाकर,
काश वापस ला पाता,
उन रत्नों को पीछे जाकर।

परन्तु समय के इस बहाव ने,
कभी अपनी दिशा नहीं बदली,
मात्र किसी की सोच पर।

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