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Showing posts from April, 2018

वर्षा

अमावस की वो रात अंधेरी  चमके बादल बरसे पानी, भाग के हमने खटिया संभाली, जब सर पे टपकी बूंद न्यारी। हालत तो थी एक दम पानी पानी, भीग चुके थे बिस्तर और मच्छरदानी, ठंडी भी अब लगने लगी थी, हवा के झोंको में तबीयत बिगड़ने लगी थी। देख बारिश माता दौड़ी, चूल्हा ढक कर, ईंधन छाया में लाई, परन्तु भीगने से खुद को ना बचा पाई। खुद को सुखाकर दादी के पास गया, दादी ने प्यार से गले लगाया, पुराना अपना एक किस्सा सुनाया, सुनते सुनते कब सो गया, ये तो मैं अब तक नहीं जान पाया। सुबह उठा पक्षी गुंजन में, सीधा गया छतपर मै, देख शांति उस पल की, धीमे शीतल झोंको को भी, महसूस मै कर पाया।

प्यार की बुंदे

(for English scroll down....) "बाहर मौसम खराब हो रहा है, हमें जल्दी चलना चाहिए" खिड़की से मौसम की हालत देखकर राज अपनी पत्नी से बोलता है। वो दोनो एक क्लब में बैठे हुए थे जहां वो अपनी शादी की पांचवीं सालगिरह मना रहे थे। रात के 11:30 बज चुके थे,दोनों ने तब निकल ने का फैसला किया। "मै मूल्य अदा करके आता हूं" राज अनीता से बोलता है। "आज का दिन खास रहा मेरे लिए,धन्यवाद जो तुम्हे आज का दिन याद रहा" अनीता राज का हाथ पकड़ कर बोलती है। राज भी तब अनीता के करीब आकर बोलता है," मेरे जीवन में तुमसे आवश्यक कुछ नहीं है।" तब  राज मूल्य अदा करने चला जाता है। बारिश शुरू हो चुकी थी दोनों दौड़ कर कार तक जाते हैं। वे दोनों हंसते और बाते करते घर की ओर बढ़ रहे थे दोनों एक दूसरे हाथ पकड़े हुए थे। तूफ़ान भी तेज़ हो रहा था, आसमान में बिजली भी चमकने लगी थी। तेज़ बारिश में भी राज तेज रफ्तार से ही कार चला रहा था। अचानक बिजली की जोरदार चमक उनकी कार के सामने होती है राज की आंखे बंद हो जाती है, वो जल्दी में कार का मुख मोड़ देता है और कार सड़क किनारे लगे खंबे से टकरा जाती हैं। रा

रेलवे स्टेशन

ठंडी हवाएं चल रही थी , रेलवे स्टेशन पर सन्नाटा था। अभी भी काठगोदाम एक्सप्रेस को आने में एक घंटे का समय शेष था। सर्दी के इस मौसम में राजू ठिठुर रहा था। राजू प्लेटफॉर्म पर घूम रहा था कि तभी हावड़ा से अमृतसर जाने वाली अमृतसर एक्सप्रेस का प्लेटफार्म नंबर दो पर आने की घोषणा हुई। राजू अपनी जेबों में हाथ डाले , कानों में हेडफोन लगाकर पैरो पर थिरक रहा था ताकि शरीर गर्म रहे और उसे ज्यादा ठंड ना लगे । तभी ट्रेन का हार्न बजता है और ट्रेन प्लेटफार्म नंबर दो पर आकर रुक जाती है । ट्रेन के रुकने पर थोड़ी चहलकदमी होती है कुछ लोग ट्रेन से उतरते हैं कुछ चढ़ते है। पांच मिनट रुकने के बाद ट्रेन हार्न बजाकर चल देती है।राजू जो कि प्लेटफार्म तीन पर था ट्रेन को जाते देख रहा था । ट्रेन के गुजरते ही राजू की नजर एक लड़की पर पड़ती है जो अपने सामान को संभालने की कोशिश कर रही थी। राजू ने थिरकना बंद कर दिया था और उसके हाथ भी अब जेबो से बाहर थे । वो लड़की जब समान में उलझी थी तभी उसकी नज़र भी राजू पर पड़ी , राजू उसकी मदद करने के लिए तेजी से पटरिया   पार कर उसके पास पहुंचा । "क्या में आपकी कुछ मदद करूं ??"

काला नमक

ये बात उन दिनों की है जब मै कक्षा पांच में पढ़ता था। उन दिनों मुझे काला नमक खाने की गन्दी लत लग चुकी थी । जब भी मैं खाली होता , मै नमक को खाने बैठ जाता। मेरे पास उन दिनों एक थैली हुआ करती थी जिसमे मैं नमक को रखा करता था। मेरी रोज की दिनचर्या में , मै स्कूल के लिए तैयार होता और माता से थोड़ा काला नमक थैली में डलवाता , जाते हुए दादा को नमस्ते करता और फिर पड दादा को । अंत में अपनी पड दादी के पास कुछ देर बैठता , जब तक कि मेरा छोटा भाई नहीं आ जाता। उसके बाद हम साथ में ही स्कूल जाते । हम प्राथमिक स्कूल में पढ़ते थे जहां मेरे ततेरे भाई बहन भी पढ़ते थे। वो दिन भी रोज की तरह ही शुरू हुआ। मेरे पास मेरे नमक की थैली थी। जिसमे से हर थोड़े समय बाद एक   अंगुली नमक निकलता और उसे धीरे धीरे चाटने लगता । मेरे साथ मेरा ततेरा भाई भी इस काम में शामिल हो चुका था ,   हम दोनों हमेशा आधी छुट्टी में स्कूल के मैदान के एक कोने में बैठ कर नमक खाते और बच्चो को खेलते देखते। हम दोनों उस दिन भी वही जाकर बैठ गए , अभी में थैली निकालने ही वाला था कि उस दिन दो लड़कियां जिसमें   एक मॉनिटर थी हमारे पास आयी। उनमें से