समय
समय जीवन की एक बहुमूल्य वस्तु, जिसका सदुपयोग लगभग कुछ ही मनुष्य जान पाते है जो जान पाते है उनको समय कभी भूलने नहीं देता। समय एक निरंतरता है जो आवश्यक है प्रकृति के लिए। तो कितना जाना है हमने समय को?
हम कभी इसकी गति से नहीं चलना चाहते है,शायद यही कारण हो कि हम इसके महत्व को समझ ही नहीं पाते। लेकिन समय आज जिस रफ्तार से चल रहा है अर्थात आज के समय में समाज में, प्रकृति में जिस गति से परिवर्तन आ रहा है वह प्रशंसनीय भी है और चिंताजनक भी। जहां हम समय की धारा में बहकर आधुनिकता की ओर बढ़ रहे है, वहीं दूसरी ओर हम अपने नैतिक मूल्यों को भी भूलते और छोड़ते जा रहे है। ये आवश्यक हैं कि यदि आगे बढ़ना है तो हमें समय के इस बहाव के साथ समाज और प्रकृति में आए परिवर्तनों को स्वीकारना होगा, किन्तु अपने नैतिक मूल्यों के आधार को छोड़ना कहां तक उचित है। ये एक विचारणीय विषय है जिसकी हमें समीक्षा करनी चाहिए।
हम कभी इसकी गति से नहीं चलना चाहते है,शायद यही कारण हो कि हम इसके महत्व को समझ ही नहीं पाते। लेकिन समय आज जिस रफ्तार से चल रहा है अर्थात आज के समय में समाज में, प्रकृति में जिस गति से परिवर्तन आ रहा है वह प्रशंसनीय भी है और चिंताजनक भी। जहां हम समय की धारा में बहकर आधुनिकता की ओर बढ़ रहे है, वहीं दूसरी ओर हम अपने नैतिक मूल्यों को भी भूलते और छोड़ते जा रहे है। ये आवश्यक हैं कि यदि आगे बढ़ना है तो हमें समय के इस बहाव के साथ समाज और प्रकृति में आए परिवर्तनों को स्वीकारना होगा, किन्तु अपने नैतिक मूल्यों के आधार को छोड़ना कहां तक उचित है। ये एक विचारणीय विषय है जिसकी हमें समीक्षा करनी चाहिए।
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