अकेला चल

यदि कोई तुझ से कुछ न कहे,
तुझे भाग्यहीन समझकर सब तुझसे
मुंह फेर ले और सब तुझसे डरे,
तो भी तू अपने हृदय से
अपना मुंह खोलकर
अपनी बात कहता चल।

अगर तुझसे सब विमुख हो जाए,
यदि गहन पथ प्रस्थान के समय
कोई तेरी ओर फिर कर भी ना देखे,
तब पथ के कांटों को
अपने लहू लुहान पैरो से
दलता हुआ अकेला चल।

यदि प्रकाश न हो,
झंझावात और मूसलाधार
वर्षा की अंधेरी रात में
जब अपने घर के दरवाजे भी तेरे लिए
लोगो ने बंद कर लिए हो,
तब उस वज्रानल में
अपने वक्ष के पिंजर को जलाकर
उस प्रकाश में अकेला ही चलता रह।

ये गीत "कवींद्र रवीन्द्र" ने लिखा है।

Comments

Popular posts from this blog

समय

रेलवे स्टेशन

ठंडी रात