ठंडी रात
रात अंधेरी जब चन्द्र खिला था,
सुनसान सड़क पर वो अकेला था,
कदमों में डर था ,
मगर मन में हौसला था।
स्वान की हुंकारों में,
हर पल चौकन्ना था,
ठंडी हवाओं का झौंका,
कानों में संगीत बजाता,
उस ठिठुरन में हाथों को,
अपनी बगलो में सिकुड़ता।
शायद ढूंढ रहा था,
अगर कोई ठिकाना मिल जाए।
आंखो में नींद थी और,
शरीर में जकड़न,
पर ध्यान तो उसका कुछ ओर ही खींच रहा था।
स्वानों की मस्ती में खुद का बचपन ढूंढ रहा था।
पर वो तो बीत गया,अब मै ठहरा क्यों?
बस यही प्रश्न वो खुद से कर बैठा।
उत्तर मिला या नहीं मैं नहीं जानता, मगर
ठहरने को छोड़ उसने तो चलने को अपनाया,
विश्राम करके क्या करता, अभी तक तो सोया था।
सुनसान सड़क पर वो अकेला था,
कदमों में डर था ,
मगर मन में हौसला था।
स्वान की हुंकारों में,
हर पल चौकन्ना था,
ठंडी हवाओं का झौंका,
कानों में संगीत बजाता,
उस ठिठुरन में हाथों को,
अपनी बगलो में सिकुड़ता।
शायद ढूंढ रहा था,
अगर कोई ठिकाना मिल जाए।
आंखो में नींद थी और,
शरीर में जकड़न,
पर ध्यान तो उसका कुछ ओर ही खींच रहा था।
स्वानों की मस्ती में खुद का बचपन ढूंढ रहा था।
पर वो तो बीत गया,अब मै ठहरा क्यों?
बस यही प्रश्न वो खुद से कर बैठा।
उत्तर मिला या नहीं मैं नहीं जानता, मगर
ठहरने को छोड़ उसने तो चलने को अपनाया,
विश्राम करके क्या करता, अभी तक तो सोया था।
अच्छे लिखे हो बंधु
ReplyDeleteकीप द स्पिरिट अप