स्वयं
कौन कहता है वो जो हर कोई सुनता है,
कौन जीता है ऐसे कि हर कोई मरता है,
कौन खुद के अंधेरों में जीता है,
कौन रो रो कर गुजारा करता है।
कथा ये जीवन की बड़ी अटपटी,
हर कोई इसमें सिमटने की कोशिश करता है,
कभी हसता है कभी रोता है,
फिर भी इसके आगोश में सोने की इच्छा करता है।
मनुष्य महान है जो तू बेवजह संघर्ष करता है,
तृप्ति में भी प्यासा रह जाता है,
आखिर तेरी मंजिल क्या है?
जिसे तू हर कदम ढूंढता है।
कभी खुद को भी जानने की कोशिश कर,
संघर्ष तो कर परन्तु उद्देश्य पूर्ण कर,
खुद के अस्तित्व की पहचान कर,
मत भटक इधर उधर,
तुझमें ही तेरा विराम है...!
कौन जीता है ऐसे कि हर कोई मरता है,
कौन खुद के अंधेरों में जीता है,
कौन रो रो कर गुजारा करता है।
कथा ये जीवन की बड़ी अटपटी,
हर कोई इसमें सिमटने की कोशिश करता है,
कभी हसता है कभी रोता है,
फिर भी इसके आगोश में सोने की इच्छा करता है।
मनुष्य महान है जो तू बेवजह संघर्ष करता है,
तृप्ति में भी प्यासा रह जाता है,
आखिर तेरी मंजिल क्या है?
जिसे तू हर कदम ढूंढता है।
कभी खुद को भी जानने की कोशिश कर,
संघर्ष तो कर परन्तु उद्देश्य पूर्ण कर,
खुद के अस्तित्व की पहचान कर,
मत भटक इधर उधर,
तुझमें ही तेरा विराम है...!
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