चाह

राहत भी आहत लगती है
जब जिंदगी ठहर जाती है।
मुश्किलों में चमन को देखे ,
जब जुबां पिघल जाती है।
कांटो का सौदा करे,
पुष्प की चाह में,
ये रिवायत हो कैसे पूरी,
जब जमीं बंजर हो जाती है।
मरघट भी सुखने लगे,
अपने अस्तित्व को बचाने लगे,
यहां तो नदियों भी सुखी रेत बची है,
तो उनकी उम्मीद भी खो सी जाती है।

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