अकेला मन
कोसा नहीं कभी भाग्य को,
अपनी गलती को स्वीकारा है,
दुख है मन में उसके, क्योंकि
गलतियों को आदत बना डाला है,
तब ही दुख के अंधियारे में,
ये मन अकेला है।
कभी दुख को किसी से बांटा नहीं,
कभी उस दुख का कारण खोजा नहीं,
समझ के गलती खुद की, दुख को पाला हैं,
तब ही दुख के अंधियारे में,
ये मन अकेला है।
परिश्रम कभी करना चाहा नहीं,
आलस्य को भी कभी त्यागा नहीं,
सदा खुद पर निराशा का साया डाला है,
तब ही दुख के अंधियारे में,
ये मन अकेला है।
अपनी गलती को स्वीकारा है,
दुख है मन में उसके, क्योंकि
गलतियों को आदत बना डाला है,
तब ही दुख के अंधियारे में,
ये मन अकेला है।
कभी दुख को किसी से बांटा नहीं,
कभी उस दुख का कारण खोजा नहीं,
समझ के गलती खुद की, दुख को पाला हैं,
तब ही दुख के अंधियारे में,
ये मन अकेला है।
परिश्रम कभी करना चाहा नहीं,
आलस्य को भी कभी त्यागा नहीं,
सदा खुद पर निराशा का साया डाला है,
तब ही दुख के अंधियारे में,
ये मन अकेला है।
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