पंतनगर का इंजीनियर

पढ़ना लिखना भूल गया,
आकर इन गलियारों में,
राह नहीं है याद उसको,
मंजिल है उसकी क्या,
ये हैं इंजीनियर, पंतनगर के गलियारों का।
देख के सुंदर फूल यहां के,
बन बैठा भवरां ये,
रोज निहारता कई फूलों को,
इस जंगली बगिया में।
है कांटो की भरमार यहां पर,
है मंज़िल खतरनाक यहां पर,
देखा भवरें ने जब ये सब,
हुआ एहसास गलती का तब,
जीना सीख गया भवरां,
इस मायावी बगिया में,
कांटो से बचना, मंडराना फूलों पर,
काम यही है अब उस भवरें का,
ये है इंजीनियर, पंतनगर के गलियारों का।

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