यात्रा... स्वयं की - १

"चाचा जी ये रहा आपका कम्बल और आते समय मेरे लिए कुछ लेकर आना ।" ये कहकर वह बालक चाचा जी के चरण स्पर्श करता है। चाचा जी उसे उठा कर गोद में बिठा लेते है, पूछते है कि " बता क्या लाऊ तेरे लिए मेले से।" बालक उत्सुकता से बोला, " मुझे एक रथ चाहिए जिसमें चार घोड़े हो",
इसपर चाचा जी मुस्कुराए, " अच्छा ठीक है," चाचा जी खड़े हो जाते हैं अपना मोटा कम्बल कंधे पर रखते है और एक कपड़े का बना थैला बगल में टांग लेते है और उस बालक के सर पर प्रेम से हाथ रखते है मानो वो खुद को देख रहे हो।
चाचा जी लक्सर रेलवे स्टेशन से प्रयागराज के लिए जाने वाली रेलगाड़ी में बैठते है। रेलगाड़ी कुंभ में जाने वाले यात्रियों से भरी हुई थी। चाचा जी भी नीचे जगह बना कर बैठ गए और कम्बल लपेट लिया। ठंड बहुत ज्यादा थी फिर भी लोग पूर्णिमा के स्नान के लिए लाखो की संख्या में कुंभ की ओर बढ़ रहे थे।
अभी चाचा जी को निद्रा और भीड़ के कारण कम परेशानी हो रही थी कि दो व्यक्ति पता नहीं कहा से स्त्री समानता के ऊपर वाद विवाद करने लगे। दोनों व्यक्ति इस बात का निर्धारण ही नहीं कर पा रहे थे कि इस समानता में किसकी स्वतंत्रता कितनी हो।
चाचा जी का स्वभाव था कि किसी भी वाद विवाद में वो एक दम से नहीं कूदते थे । परन्तु वहां का वातावरण ऐसा हो गया था कि उन दोनों व्यक्ति की चर्चा धीरे धीरे वहा बैठे सभी व्यक्तियों की हो गई थी अब हर व्यक्ति अपनी बुद्धि और विवेक से एक अवधारणा रखे जा रहा था। एक व्यक्ति बोला," समाज में स्त्री पुरुष समान होने ही चाहिए और पुरुष का एकाधिकार समाप्त होना चाहिए।" इतने पर दूसरा व्यक्ति बोला, "इसमें पुरुष के अधिकारो की बात कहा से आयी, स्त्री को समानता मिले लेकिन पुरुष की स्वतंत्रता और स्त्री की स्वतंत्रता में भेद हैं।"
" अपने तो स्वतंत्रता में भेद कर दिया आप क्या समानता की बात करेंगे",चाचाजी की बगल में बैठे व्यक्ति तपाक से बोला। धीरे धीरे सभी ने बात कहीं तब चाचा जी के बगल में बैठे व्यक्ति ने चाचा जी को भी अपनी बात रखने के लिए कहा, चाचा जी पहले तो उन सभी के चेहरों को देखने लगे, हल्की चमक के साथ चाचा जी बोले," स्त्री समानता की चर्चा करने की आज आवश्यकता आ गई इसका कारण क्या हैं इसपर किसी ने चर्चा नहीं की, इसमें पुरुष की भी मर्यादाओं का चिंतन होना चाहिए, जब पुरुष ने अपनी मर्यादाओं का उलंघन किया तो स्त्री और कमजोरो का दमन किया। स्त्री को समानता मिलनी ही चाहिए चाहे वो शिक्षा का हो या व्यापार का,रोजगार का हो या इच्छानुसार विवाह का। ये समानता और स्वतंत्रता तो उसका अधिकार है।
परन्तु व्यभिचार की स्वतंत्रता और मर्यादाओं के उलंघन की स्वतंत्रता ना पुरुष को है ना ही स्त्री को। स्त्री और पुरूष को सदा अपने कर्तव्यों का स्मरण रख कर ही कर्म करना चाहिए और यही सही मायनों में स्त्री पुरुष की समानता को स्थिर कर पाएगी।"
चाचा जी के विचार को सुन सभी के मुख पर सन्नाटा छा गया था। चाचाजी ने भी एक लम्बी सांस ली शांत हो कर बैठ गए। अब सभी लोग हल्की फुसफुसाहटों में बात करने लगे कुछ उत्तर से संतुष्ट हो सोने लगे।
चाचा जी भी इस शांति का लाभ उठा सो गए।

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