मन

अब मै ऊब चुका हूं
इन व्यर्थ की संकाओ से
क्यों हर वक्त सोचता था
अब बस यही सोचता हूं

पर सोचना तो छूटा नहीं
शायद यही मुसीबत है,
जो छूटती ही नहीं,
तभी तो हर वक्त मुसीबत
सामने नजर आती है

क्या करू मै अब
कुछ समझ नहीं आता
बस इस धारा में
बह जाने को मन चाहता

कभी लगता है
कितना कमजोर है
ये मन मेरा
इसको समझता हूं बार बार
ये अंत नहीं है तेरे सामर्थ्य का
तुझे जरूरत है बस
खुद को पहचान ने की

नहीं मानता ये
बस भटकने के नशे में
खुद को रखना चाहता है
ना जाने क्यों ये इसको
इतना पसंद करता है

कोई इसे समझाओ
अभी तो सफ़र लम्बा है
तू क्यों थकान महसूस
करता है
तेरी अभी उम्र ही क्या है

तूने खुद को आईने में देखा कभी
यदि देखता गौर से तो
तुझे तेरी खूबसुरती दिखाई देती

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