श्रद्धा

श्रद्धा,... ये शब्द बड़ा है, इसलिए इसका महत्व भी बड़ा है। परन्तु प्रश्न यह उठता है कि श्रद्धा सत्य में रखी जाए या उस असत्य में। फिर प्रश्न ये उठता है कि सत्य क्या है और असत्य क्या, इसकी पहचान कैसे हो । इसकी प्रामाणिकता कैसे होगी कि सत्य क्या है वैसे कुछ कहेंगे की सत्य को प्रमाण की क्या आवश्यकता,तब तो प्रमाण की आवश्यकता तो असत्य को भी नहीं होगी । यदि हमें इन दोनों में अंतर करना ही है तो कोई पृष्टभूमि रखनी होगी कुछ तो आधार बनाना होगा । उसके पश्चात उस पर श्रद्धा करनी होगी। तब हर विचार को उस आधार से तुलना कर समझना होगा ।

Comments

Popular posts from this blog

ठंडी रात

समय

अकेला मन