वर्षा


अमावस की वो रात अंधेरी 
चमके बादल बरसे पानी,
भाग के हमने खटिया संभाली,
जब सर पे टपकी बूंद न्यारी।
हालत तो थी एक दम पानी पानी,
भीग चुके थे बिस्तर और मच्छरदानी,
ठंडी भी अब लगने लगी थी,
हवा के झोंको में तबीयत बिगड़ने लगी थी।
देख बारिश माता दौड़ी,
चूल्हा ढक कर, ईंधन छाया में लाई,
परन्तु भीगने से खुद को ना बचा पाई।
खुद को सुखाकर दादी के पास गया,
दादी ने प्यार से गले लगाया,
पुराना अपना एक किस्सा सुनाया,
सुनते सुनते कब सो गया,
ये तो मैं अब तक नहीं जान पाया।
सुबह उठा पक्षी गुंजन में,
सीधा गया छतपर मै,
देख शांति उस पल की,
धीमे शीतल झोंको को भी,
महसूस मै कर पाया।

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